साधरण खेती छोड़ शुरू की थाई एप्पल की खेती, अब कमाई लाखो में…
राजस्थान प्रदेश के करौली जिले में अधिकतर किसान परंपरागत खेती से जुड़े हुए हैं। इससे उन्हें सिर्फ घर चलाने के लायक ही आय हो पाती है। लेकिन इन दिनों टोडाभीम क्षेत्र के खेड़ी गांव के उपसरपंच नरहरी मीणा ने खेती में नवाचार करते हुए परंपरागत खेती को छोड़ थाई एप्पल की खेती शुरू की है।
भारत में थाई एप्पल की पैदावार खास तौर पर कोलकाता की तरफ होती है। वहीं से थाई एप्पल की खेती देख खेड़ी गांव के उपसरपंच ने इसकी शुरुआत की है। इससे अब उन्हें सालाना अच्छी आय हो रही है।
किसान नरहरी मीना ने बताया कि हमारे माता-पिता और बुजुर्ग कई पीढ़ियों से परंपरागत खेती करते आ रहे हैं।
परंपरागत खेती जैसे गेहूं, चना और सरसों से हम केवल पेट भर सकते हैं। अच्छी आमदनी के लिए मैंने इस बार अपने दो बीघा जमीन में थाई एप्पल का बगीचा लगाया है।
इसके लिए मैंने 07 महीने पहले कोलकाता से पौधे मंगवाकर अपने खेत में लगाया था। नरहरी मीणा ने बताया कि किसानों के लिए थाई एप्पल की खेती कम समय में अच्छी आमदनी का जरिया है।
इसकी खेती में मेहनत कम और कम जमीन की आवश्यकता पड़ती है। लगभग 01 बीघा जमीन में ही 02 लाख रुपये की आय होती है। इसका पौधा छह महीने में फल देना शुरू कर देता है जबकि एक साल के बाद इसका एक पेड़ एक क्विंटल तक फल देने लग जाता है।
नरहरी मीणा ने बताया कि पौधे से पेड़ बनने के लगभग छह महीने के बाद इसमें फल लगने शुरू हो गये। थाई एप्पल की खेती से लगभग एक बीघा में दो लाख रुपये की आमदनी हो जाती है।
वहीं परंपरागत खेती में पांच बीघा जमीन में गेहूं और सरसों की फसल से एक लाख रुपये की भी आमदनी नहीं हो पाती थी। किसानों के लिए यह खेती आमदनी का अच्छा जरिया है।